जन जन के आस्था के प्रतीक है बाबा मनोहर दास.......................
वैर । प्रताप किले के नीचे बना बाबा मनोहरदास जी का मंदिर जन जन के आस्था का प्रतीक है। जिनकी आज 60वी पुण्यतिथि महोत्सव के रूप में मनाई जा रही है
बाबा मनोहर दास का जीवन परिचय..................................
बाबा मनोहरदास जी का जन्म भाद्रपद शुक्ला एकादशी संवत 1952 को वैर में भजन लाल नगाइच के घर हुआ। जन्म कुण्डली के अनुसार नाम मूला रखा गया। उस समय वैर को लघुकाशी के रूप में जाना जाता था। बाबा की शिक्षा वैर में हुई, संस्कृत भाषा से अधिक लगाव था। उन पर गीता का सर्वाधिक प्रभाव पडा। सहपाठियों और हमउम्र नौजवानों की सलाह से पुलिस में भर्ती हो गये। एक दिन ब्रिटिश पुलिस अधिकारी ने डयूटी के दौरान गीता का अध्ययन करते हुये देखा तो पढने से मना कर दिया। उन्होने गीता पाठन के बजाय नौकरी ही छोड दी। विचरण करते हुये उदयपुर पर्वत श्रृखलाओं पर सन्त गणेश दास जी महाराज से विधिवत दीक्षा ली। 12-13 वर्ष गुरू के सानिध्य में रहकर पुनः लघुकाशी वैर लौट आये। गुरू महाराज ने उनका नाम मनोहरदास रखा। अपनी धूनी पर भक्तों से कहा करते थे ‘‘अलख निरंजन गुरू का ज्ञान न्यारा है, तू नहीं समझेगा। ‘‘ बाबा धूनी छोडकर फूलवाडी,नौलखा बाग,अस्थल हनुमान,वावडी हनुमान आदि पर विचरण करते रहते , यदि पथ के समीप हड्डियों को देख लेते तो हाथ या कंधे पर रखकर धूनी पर ले आते , उन्हें अपने पास रखते।वे कहां चली जाती यह रहस्य मय ही रहता । उनका पंचतत्व देह संवत 2015 अगहन सुदी 6 मंगलवार को ब्रहमवेला में ब्रहमलीन हो गया।
थानेदार भी बन गया शिष्य......................................
नारायण सिंह भरतपुर कोतवाली से वैर थानेदार बन कर आये। एक बार नारायणजी रात्रि एक बजे गस्त के लिये निकले , बाबा चबूतरे पर सिंहासन से बैठे हुये थे। थानेदार जी ने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया और आगे गस्त पर निकल गये। किले के नीचे रास्ते पर उन्होने बाबा को पडे हुये देखा उनके हाथ ,पैर ,धड सब अलग अलग थे। वे आश्चर्य में पड गये और वापिस धूने पर आकर देखा तो बाबा पूर्वबत बैठे हुये मिले। तभी से वह पुलिस की बर्दी की नौकरी छोडकर उनके शिष्य बन गये। बाबा ने उनका नाम नारायण सिंह से बदल कर नारायण दास रख दिया ।नारायण दास ने ही अन्तिम समय तक उनकी सेवा की और अन्तिम संस्कार कर उस स्थान पर मंदिर की नींव रखी । बाबा के मन्दिर की आधार शिला नारायण दास जी ने और प्रतिमा की स्थापना बाबा कुन्दन दास ने की । अब वर्तमान में बाबा जैराम दास मंदिर ट्रस्ट का दायित्व संभाले हुये है। जैराम दास जी को 1990 मे अयोध्या से लाये गये थे जो 1991 से सेवा में लगे हुये है।
वैर । प्रताप किले के नीचे बना बाबा मनोहरदास जी का मंदिर जन जन के आस्था का प्रतीक है। जिनकी आज 60वी पुण्यतिथि महोत्सव के रूप में मनाई जा रही है
बाबा मनोहर दास का जीवन परिचय..................................
बाबा मनोहरदास जी का जन्म भाद्रपद शुक्ला एकादशी संवत 1952 को वैर में भजन लाल नगाइच के घर हुआ। जन्म कुण्डली के अनुसार नाम मूला रखा गया। उस समय वैर को लघुकाशी के रूप में जाना जाता था। बाबा की शिक्षा वैर में हुई, संस्कृत भाषा से अधिक लगाव था। उन पर गीता का सर्वाधिक प्रभाव पडा। सहपाठियों और हमउम्र नौजवानों की सलाह से पुलिस में भर्ती हो गये। एक दिन ब्रिटिश पुलिस अधिकारी ने डयूटी के दौरान गीता का अध्ययन करते हुये देखा तो पढने से मना कर दिया। उन्होने गीता पाठन के बजाय नौकरी ही छोड दी। विचरण करते हुये उदयपुर पर्वत श्रृखलाओं पर सन्त गणेश दास जी महाराज से विधिवत दीक्षा ली। 12-13 वर्ष गुरू के सानिध्य में रहकर पुनः लघुकाशी वैर लौट आये। गुरू महाराज ने उनका नाम मनोहरदास रखा। अपनी धूनी पर भक्तों से कहा करते थे ‘‘अलख निरंजन गुरू का ज्ञान न्यारा है, तू नहीं समझेगा। ‘‘ बाबा धूनी छोडकर फूलवाडी,नौलखा बाग,अस्थल हनुमान,वावडी हनुमान आदि पर विचरण करते रहते , यदि पथ के समीप हड्डियों को देख लेते तो हाथ या कंधे पर रखकर धूनी पर ले आते , उन्हें अपने पास रखते।वे कहां चली जाती यह रहस्य मय ही रहता । उनका पंचतत्व देह संवत 2015 अगहन सुदी 6 मंगलवार को ब्रहमवेला में ब्रहमलीन हो गया।
थानेदार भी बन गया शिष्य......................................
नारायण सिंह भरतपुर कोतवाली से वैर थानेदार बन कर आये। एक बार नारायणजी रात्रि एक बजे गस्त के लिये निकले , बाबा चबूतरे पर सिंहासन से बैठे हुये थे। थानेदार जी ने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया और आगे गस्त पर निकल गये। किले के नीचे रास्ते पर उन्होने बाबा को पडे हुये देखा उनके हाथ ,पैर ,धड सब अलग अलग थे। वे आश्चर्य में पड गये और वापिस धूने पर आकर देखा तो बाबा पूर्वबत बैठे हुये मिले। तभी से वह पुलिस की बर्दी की नौकरी छोडकर उनके शिष्य बन गये। बाबा ने उनका नाम नारायण सिंह से बदल कर नारायण दास रख दिया ।नारायण दास ने ही अन्तिम समय तक उनकी सेवा की और अन्तिम संस्कार कर उस स्थान पर मंदिर की नींव रखी । बाबा के मन्दिर की आधार शिला नारायण दास जी ने और प्रतिमा की स्थापना बाबा कुन्दन दास ने की । अब वर्तमान में बाबा जैराम दास मंदिर ट्रस्ट का दायित्व संभाले हुये है। जैराम दास जी को 1990 मे अयोध्या से लाये गये थे जो 1991 से सेवा में लगे हुये है।
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